
ब्यूरो रिपोर्ट रविशंकर मिश्रा
उत्तर प्रदेश के जनपद चंदौली अंतर्गत नियामताबाद ब्लॉक में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार द्वारा शुरू की गई “महामाया योजना” के अंतर्गत संचालित हाईटेक एम्बुलेंस (सचल अस्पताल) आज बदहाल स्थिति में ब्लॉक परिसर में कबाड़ बनकर खड़ी है। यह योजना प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन समय के साथ विभागीय लापरवाही और घोटालों की भेंट चढ़कर यह महत्वाकांक्षी योजना अपनी चमक खो बैठी।

महामाया सचल अस्पताल मोबाइल वैन को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि यह एक चलता-फिरता मिनी अस्पताल हो। इसमें ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयों की पूरी व्यवस्था, एसी, तथा इमरजेंसी के लिए आईसीयू तक की सुविधा मौजूद थी। इसे ऑपरेट करने के लिए डॉक्टर, स्टाफ नर्स, फार्मेसिस्ट और वार्ड बॉय की तैनाती भी सुनिश्चित की गई थी। योजना का मकसद था कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले उन लोगों को समय पर चिकित्सा सुविधा मिले जो बड़े अस्पतालों तक नहीं पहुंच पाते।
हालांकि, जब राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाला सामने आया, तो इस योजना पर भी सवाल उठे और जांच के घेरे में आने के बाद धीरे-धीरे इसका संचालन ठप हो गया। स्वास्थ्य विभाग की बेरुखी और देखरेख के अभाव में यह सचल अस्पताल अब जर्जर हालत में पहुंच गया है। महंगी मशीनें और मेडिकल इक्विपमेंट अब जंग खा रहे हैं।

स्थिति यह है कि यह एम्बुलेंस अब महज एक लोहे का ढांचा बनकर रह गई है जो ब्लॉक परिसर में कबाड़ की तरह पड़ी है। न तो इसे दुरुस्त कर पुनः उपयोग में लाया जा रहा है और न ही इसकी नीलामी कर राजस्व अर्जित किया जा रहा है। यदि स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में सक्रियता दिखाए तो इसे नीलाम कर सरकार को लाखों रुपये की आय हो सकती है, जिससे अन्य स्वास्थ्य योजनाओं में सहयोग मिल सकता है।
समस्या केवल एक वैन की नहीं, बल्कि यह प्रशासनिक लापरवाही और संसाधनों के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। समय की मांग है कि ऐसी योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन कर उपयोगिता सुनिश्चित की जाए, जिससे जनता के पैसे का समुचित लाभ उन्हें मिल सके।