
ब्यूरो रिपोर्ट रविशंकर मिश्रा
उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद के कई ग्रामीण क्षेत्रों में गंगा नदी का पानी तेजी से फैल रहा है, जिससे हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। पानी गांवों में घुस चुका है और सैकड़ों परिवार पलायन को मजबूर हो चुके हैं। फसलें बर्बाद हो गई हैं, घरों में पानी भर गया है और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। इस मुश्किल समय में प्रशासन द्वारा राहत और बचाव के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन संसाधनों की कमी और प्रभावित लोगों की बढ़ती संख्या के कारण ये प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।

ऐसे गंभीर समय में जनप्रतिनिधियों का रवैया जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। कुछ नेता केवल दिखावे के लिए बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जा रहे हैं, अधिकारियों के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपनी ‘संवेदनशीलता’ का प्रदर्शन कर रहे हैं। कई स्थानों पर देखा गया कि नेता केवल एक-दो घंटे के लिए पहुंचते हैं, सेल्फी लेते हैं, अधिकारियों को डांटते हैं — ताकि ऐसा लगे कि वे जनता के लिए कुछ कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि ना तो उन्होंने अपने निजी संसाधनों से कोई सहायता की और ना ही कोई ठोस राहत कार्य शुरू कराया।

गांव वालों का कहना है कि चुनाव के समय यही नेता बड़े-बड़े वादे करते हैं, हर सुख-दुख में साथ खड़े रहने की बात करते हैं, लेकिन अब जब ज़मीनी स्तर पर मदद की सबसे ज्यादा ज़रूरत है, तब ये नेता केवल कैमरे के सामने आने तक सीमित हैं। कोई भी जनप्रतिनिधि न तो अपने फंड का सही इस्तेमाल कर रहा है और न ही स्वयं आर्थिक सहायता दे रहा है।
जनता का आक्रोश जायज़ है। कठिन परिस्थितियों में केवल प्रचार की राजनीति करना अमानवीय है। यह समय दिखावे का नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर मदद का है। प्रशासन अपनी सीमित क्षमता के बावजूद कोशिश कर रहा है, लेकिन जब तक जनप्रतिनिधि ईमानदारी से आगे नहीं आएंगे, तब तक राहत अधूरी ही रहेगी।
जरूरत है कि हम ऐसे दिखावटी नेतृत्व को पहचानें और सच्चे सेवा भाव रखने वालों को आगे लाएं, जो संकट के समय भी जनता के साथ खड़े रहें — बिना कैमरे और सेल्फी के।