
व्यूरो रिपोर्ट रविशंकर मिश्रा
चंदौली जनपद नियमताबाद ब्लॉक के अंतर्गत पचोखर ग्राम सभा का तकिया गांव पिछले दो हफ्तों से बाढ़ की भीषण मार झेल रहा है। चंद्रप्रभा सहित अन्य नदियों के रौद्र रूप धारण करने से यह गांव पूरी तरह प्रभावित हो चुका है, लेकिन आज भी यहां के लोग राहत सामग्री के लिए टकटकी लगाए बैठे हैं। सरकारी दावे और हकीकत में कितना फर्क है, यह तकिया गांव की स्थिति को देखकर साफ झलकता है।

भारी बारिश के कारण जलस्तर में आई अचानक बढ़ोतरी ने गांव के जनजीवन को बुरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। सरकारी सहायता और राहत कार्यों की घोषणाएं भले ही बड़े स्तर पर की गई हों, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अब तक गांव में बाढ़ सामग्री राशन या किसी अन्य प्रकार की सहायता नहीं पहुंची है।

गांव के निवासी रामदास, ने बताया कि प्रशासनिक उपेक्षा के चलते गांव की साफ-सफाई तक नहीं हो रही। “ खुद मिलकर पैसे इकट्ठा करते हैं और घास मारने की दवा का छिड़काव करते हैं ताकि बच्चों को बीमारी से बचाया जा सके,” उन्होंने कहा।

बाढ़ ने छीना चैन,
गांव में लगभग 95 घर हैं, जिनमें से लगभग 36 घर आज भी कच्चे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत अब तक लगभग 53 मकान बनाए गए हैं, जबकि बाकी लोग आज भी टूटी-फूटी झोपड़ियों में जीवन बिता रहे हैं। यह स्थिति तब है जब तकीया गांव में 425 से अधिक मतदाता हैं। ग्रामीणों का कहना है कि राजनीतिक कारणों से पात्र होने के बावजूद कई लोग सरकारी योजनाओं से वंचित हैं।

निवासी, श्याम लाल कहते हैं, “यहा के लोग मजबूरी में कच्चे मकानों में रह रहे हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ सही लोगों तक नहीं मिल सका। हम लोगों की हालत नेताओं के भरोसे है, जो चुनाव के समय ही दिखते हैं।”

शिक्षा पर भी संकट
बाढ़ का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ा है। गांव का एकमात्र सरकारी स्कूल पूरी तरह जलमग्न हो गया है, जिससे यहां पढ़ने वाले लगभग 67 बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। किसी प्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था अब तक नहीं की गई है, जिससे बच्चों का भविष्य अधर में लटका है।

मूलभूत सुविधाओं से वंचित
आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी यह गांव बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है। गांव में कुल 5 सरकारी हैंडपंप हैं, निजी हैंडपंप गांव की जरूरतें पूरी कर रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि बरसात के मौसम में सड़कों की हालत इतनी खराब हो जाती है कि बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।

दिखावे की राहत, असल में शून्य
गांव के निवासी अखाडु ने बताया कि कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश सरकार के मत्स्य मंत्री संजय निषाद ने बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों का दौरा किया था। “सिकंदर शिवनाथपुर गांव में तकिया के कुछ लोगों को 12 से 15 पैकेट राशन किट दिए गए, लेकिन तकिया गांव को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया, वहां के लोगों का कहना है कि इस गांव में भी आना चाहिए था लोगों का कहा है कि “सरकार सिर्फ दावे कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हम आज भी मदद के लिए तरस रहे हैं।”

मुगलसराय के एसडीएम अनुपम मिश्रा ने बताया कि तकिया गांव में सर्वे कराया गया है और शीघ्र ही आवश्यक राहत एवं सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्होंने कहा, “प्रशासन पूरी गंभीरता से स्थिति पर नजर रखे हुए है और हम प्रयास कर रहे हैं कि हर जरूरतमंद तक सहायता पहुंचे।”

शनिवार को नरह में एक मासूम डूब गया था तब मौके पर तहसीलदार सहित कई अधिकारी प्रशासन पहुंच गए लेकिन ऐसे हाल-चाल करने कोई अधिकार इस गांव में नहीं आता है
तकिया गांव की स्थिति एक आईना है, जो दर्शाता है कि आज भी देश के कई हिस्से सरकारी योजनाओं की पहुंच से दूर हैं। बाढ़ जैसी आपदा के समय जब प्रशासन और सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, तब भी अगर लोग मदद की आस में रह जाएं, तो यह एक चिंताजनक विषय है।
सरकार को चाहिए कि राहत कार्यों को और प्रभावी बनाया जाए, ताकि असल जरूरतमंदों तक सहायता पहुंच सके। वरना ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसा नारा महज शब्दों तक सीमित रह जाएगा।