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चंदौली के धपरी गांव में निकला शिवलिंग बना राजनीति का केंद्र, भाजपा नेताओं की मौजूदगी, PDA नेता नदारद, वोट बैंक का चक्कर जाने क्या हैं मामला

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उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद के धपरी गांव में एक जमीन की खुदाई के दौरान निकले प्राचीन शिवलिंग ने पूरे क्षेत्र का माहौल धार्मिक और राजनीतिक दोनों दृष्टिकोण से गर्म कर दिया है। खुदाई के दौरान शिवलिंग के साथ-साथ अरघा साहित्य भी प्राप्त हुआ, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि यह स्थान किसी प्राचीन धार्मिक स्थल का हिस्सा रहा होगा। शिवलिंग की जानकारी मिलते ही ग्रामीणों में भारी उत्साह देखा गया और उन्होंने वहां भव्य मंदिर निर्माण की मांग जोर-शोर से शुरू कर दी।

घटना के बाद से लगातार स्थानीय लोग इस स्थान पर एकत्र हो रहे हैं। पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान जारी हैं। इसी बीच यह मामला राजनीति का भी मुद्दा बन गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेता, जिनमें स्थानीय विधायक रमेश जायसवाल भी शामिल हैं, मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों की मांग का समर्थन किया। उन्होंने मंदिर निर्माण में सहयोग का आश्वासन भी दिया।

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे अधिक चर्चा का विषय बना, वह है (PDA गठबंधन) यानी सपा-सहीत गठबंधन के नेताओं की अनुपस्थिति। गौरतलब है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में चंदौली की जनता ने भाजपा को हराकर सपा प्रत्याशी को भारी मतों से विजयी बनाया था। ऐसे में क्षेत्रीय जनता यह सवाल कर रही है कि जब वोट देने का समय आया, तब PDA नेता गांव-गांव घूमकर समर्थन मांग रहे थे, लेकिन अब जब गांव की धार्मिक आस्था से जुड़ा इतना बड़ा मुद्दा सामने आया है, तो कोई भी बड़ा नेता धापरी गांव पहुंचा तक नहीं।

स्थानीय ग्रामीणों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि मंदिर की मांग केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी है। इस स्थान को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा सकता है, जिससे गांव की पहचान बढ़ेगी और रोज़गार के अवसर भी मिलेंगे। लेकिन तीन दिन बीतने के बाद भी PDA गठबंधन का कोई प्रतिनिधि या विधायक मौके पर नहीं पहुंचा है, जिससे ग्रामीणों में मायूसी और गुस्सा देखा जा रहा है।

समाजवादी पार्टी के कुछ लोकल नेता पहुंचे और मंदिर बनवाने के पक्ष में समर्थन दिया, साथ ही संहयोग करने का वादा भी किया

धापरी गांव में अब यह मुद्दा केवल मंदिर निर्माण का नहीं रहा, बल्कि यह राजनीतिक सक्रियता और संवेदनशीलता का भी प्रतीक बन गया है। जहां भाजपा अपनी मौजूदगी से जनसमर्थन को साधने का प्रयास कर रही है, वहीं PDA नेताओं की अनुपस्थिति उन्हें राजनीतिक नुकसान पहुँचा सकती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन-सा दल इस धार्मिक भावना को जनता के विश्वास में बदलने में सफल होता है।

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