
व्यूरो रिपोर्ट रविशंकर मिश्रा
चंदौली,,मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा रक्षाबंधन के पर्व पर महिलाओं को रोडवेज बसों में नि:शुल्क यात्रा की सौगात देने की घोषणा की गई थी। इसका उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षित, सम्मानजनक और आर्थिक रूप से सुलभ यात्रा सुविधा प्रदान करना था, लेकिन चंदौली जिले में यह योजना कागज़ों तक ही सीमित रह गई। जिले की महिलाएं इस सुविधा से वंचित रह गईं, जिससे सरकार की मंशा और ज़मीनी हकीकत के बीच की खाई एक बार फिर उजागर हो गई।
50 बसों वाला चंदौली डिपो खुद ही तरस रहा है बसों के लिए, जिससे यह योजना प्रभावी रूप से लागू नहीं हो सकी। चंदौली जिले मुगलसराय पर्याप्त वहां की कमी जिला मुख्यालय पर जहां सबसे अधिक भीड़ और आवश्यकता होती है, वहां बसों की तैनाती नहीं की गई। अधिकांश बसें अन्य जिलों या बाहरी रूटों पर चलाई जा रही हैं, जिससे स्थानीय महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

रक्षाबंधन के दिन दर्जनों महिलाएं चौराहों और बस स्टैंड पर “फ्री बस” का इंतजार करती रहीं, लेकिन उन्हें मायूसी के सिवा कुछ नहीं मिला। यह न सिर्फ एक प्रशासनिक विफलता है, बल्कि जनभावनाओं की उपेक्षा भी है। मुख्यमंत्री का सीधा आदेश होने के बावजूद स्थानीय परिवहन विभाग और जिलाओ प्रशासन योजना को लागू करने में असफल रहे हैं।

इस पूरे मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकारी योजनाएं केवल घोषणाओं तक सीमित रह जाएंगी? अगर मुख्यमंत्री की घोषणा को ही जिलों में गंभीरता से नहीं लिया जाता, तो आमजन के विश्वास का क्या होगा?
फिलहाल चंदौली की महिलाएं ठगी-सी महसूस कर रही हैं। त्योहार पर अपने मायके जाने की उम्मीद लगाए महिलाएं सरकार की फ्री यात्रा योजना को लेकर सड़कों पर खड़ी रहीं, पर उन्हें कोई सुविधा नहीं मिली। नतीजतन, उन्हें महंगे किराए पर प्राइवेट साधनों का सहारा लेना पड़ा।
जिम्मेदारी केवल परिवहन विभाग की नहीं है, बल्कि स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की भी है कि वे इन योजनाओं की सही निगरानी करें और सुनिश्चित करें कि इसका लाभ आम जनता को मिले। आने वाले समय में ऐसे आयोजनों पर कार्य योजना पहले से तैयार हो और संसाधनों की वास्तविक उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
यह आवश्यक है कि सरकार की योजनाएं केवल घोषणा न बनें, बल्कि धरातल पर लागू होकर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचें। अन्यथा, जनविश्वास की यह डोर कमजोर होती जाएगी।