
ब्यूरो रिपोर्ट रविशंकर मिश्रा
उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर तहसील अंतर्गत रेउसा गांव में भारतमाला परियोजना के तहत हो रहे जमीन अधिग्रहण के विरोध में ग्रामीणों का धरना 36वें दिन भी जारी रहा। ग्रामीणों का आरोप है कि इस परियोजना को जानबूझकर मोड़ा गया है ताकि एक बीजेपी नेता और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष छत्रबली सिंह के स्कूल को बचाया जा सके। इसका सीधा असर सैकड़ों गरीबों के आशियानों पर पड़ा है, जिन्हें उजाड़ने की नौबत आ गई है।
ग्रामीणों का संघर्ष: बारिश और बिजली भी नहीं डिगा सकी हिम्मत

लगातार हो रही भारी बारिश, तेज बिजली कड़कने और अन्य विषम परिस्थितियों के बावजूद ग्रामीणों ने अपने आंदोलन को नहीं छोड़ा है। धरना स्थल पर मौजूद लोग अनिश्चितकालीन आंदोलन पर डटे हुए हैं और सरकार से जवाब की मांग कर रहे हैं। धरने में बैठी ग्रामीण महिला सुनीता ने कहा, “यह परियोजना पहले स्कूल की तरफ से निकल रही थी, लेकिन बीजेपी नेता छत्रबली सिंह के स्कूल को बचाने के लिए इसका रास्ता बदल दिया गया, जिससे अब हमारी बस्ती उजड़ने की कगार पर है।”
बच्चों का भविष्य अधर में

धरना स्थल पर मौजूद आयुष, जो कि अभी स्कूल में पढ़ाई करता है, चिंता में डूबा हुआ है। उसका कहना है कि यदि उनका मकान टूट गया तो वे लोग सड़क पर आ जाएंगे। न तो पढ़ाई रह जाएगी और न ही सिर पर छत। ऐसी स्थिति में उनके लिए जीवन यापन करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
मुआवजे को लेकर सवाल
गांव के निवासी जितेंद्र कुमार का कहना है, “हम इस परियोजना का विरोध नहीं कर रहे, क्योंकि यह देशहित में है, लेकिन जब हमारे मकान तोड़े जा रहे हैं, तो हमें पहले रहने के लिए जमीन दी जाए ताकि हम वहां मकान बनाकर रह सकें।” उनका मानना है कि सरकार को पहले पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए, फिर अधिग्रहण करना चाहिए।

वहीं एक अन्य निवासी दूधनाथ का कहना है कि मुआवजा इतना कम है कि उससे न तो वे कोई जमीन खरीद सकते हैं और न ही मकान बना सकते हैं। “इस तरह के मुआवजे से हमारा गुजारा नहीं चल सकता। अधिकारियों को बैठकर कोई रास्ता निकालना चाहिए,” उन्होंने कहा।

प्रशासन और नेताओं की भूमिका पर उठे सवाल
सुनीता ने इस पूरी स्थिति में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष छत्रबली सिंह की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने अपने निजी हितों के लिए परियोजना के मार्ग को बदलवाया है, जिससे गरीबों का घर उजड़ रहा है।


हालांकि छत्रबली सिंह ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि “भारतमाला परियोजना अपने निर्धारित रास्ते पर ही काम कर रही है। इसमें किसी प्रकार की राजनीति नहीं की जा रही।”
समाधान की जरूरत
ग्रामीणों की इस लड़ाई ने सरकार और प्रशासन के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जब किसी राष्ट्रीय परियोजना को लागू किया जाता है, तो उससे प्रभावित लोगों के पुनर्वास और मुआवजे की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। लेकिन चंदौली के रेवसा गांव में स्थिति यह है कि बिना वैकल्पिक आवास की व्यवस्था के सैकड़ों परिवारों को उजाड़ा जा रहा है।
निष्कर्ष
भारतमाला परियोजना देश की बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए एक अहम योजना है, लेकिन यदि इसकी कीमत गरीबों के आशियाने उजाड़ कर चुकाई जा रही है, तो यह चिंता का विषय है। सरकार को चाहिए कि वह प्रभावित लोगों से संवाद स्थापित करे, उचित मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था करे, ताकि विकास की राह में किसी गरीब का घर और भविष्य बलि न चढ़े। आंदोलन कर रहे ग्रामीणों की आवाज को अनसुना करना न केवल मानवता के विरुद्ध होगा, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के भी खिलाफ होगा।