
ब्यूरो रिपोर्ट रविशंकर मिश्रा
चंदौली से समाजवादी पार्टी के सांसद विरेंद्र सिंह एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं। कुछ माह पूर्व वे सपा कार्यकर्ताओं के भारी हुजूम के साथ डीडीयू मंडल स्थित रेल चिकित्सालय (लोको हॉस्पिटल) का निरीक्षण करने पहुंचे थे। निरीक्षण के दौरान अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं की कई खामियां पाई गई थीं—बदहाल सफाई व्यवस्था, दवाओं की कमी, और मरीजों की अनदेखी जैसी गंभीर समस्याएं सामने आई थीं।
मगर, सूत्रों की मानें तो यह निरीक्षण केवल राजनीतिक दबाव बनाने का माध्यम था। दरअसल, सांसद जी के संपर्क में रहे कुछ निजी अस्पतालों में रेल कर्मचारियों और उनके परिजनों को इलाज के लिए भेजने का दबाव बनाया गया था। हालांकि निरीक्षण के बाद न तो लोको अस्पताल में कोई खास बदलाव आया और न ही सुविधाएं बेहतर हुईं।

अब सांसद जी ने एक नई पहल करते हुए रेल मंत्री से मुलाकात की और रेल सुरक्षा एजेंसियों—RPF व GRP—पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने ज्ञापन सौंपते हुए मादक पदार्थों की तस्करी, हवाला कारोबार और अवैध गतिविधियों में लिप्तता की बात कही। दूसरी ओर, वास्तविकता यह है कि सुरक्षा एजेंसियां लगातार सक्रिय हैं।
पिछले एक महीने में RPF व GRP की संयुक्त कार्रवाई में शराब तस्करों पर मुकदमे दर्ज, अवैध स्टैंड पर शिकंजा और हवाला के लाखों रुपये जब्त किए गए हैं। स्टेशन परिसर से अवैध रूप से संचालित स्टैंड को हटा दिया गया, मगर यह बात सांसद जी की नजर में नहीं आई।
सूत्रों का यह भी दावा है कि सांसद जी के करीबी कुछ लोगों द्वारा रेलवे परिसर में अवैध स्टैंड का संचालन किया जा रहा था। ऐसे में सवाल उठता है कि यह पूरा मामला जनहित में कार्रवाई का है या राजनीतिक स्वार्थ और दबाव की रणनीति का?
सांसद जी का रिकॉर्ड यह दिखाता है कि वे ऐसे मामलों में जागरूकता तो दिखाते हैं, लेकिन परिणामों की जिम्मेदारी या पारदर्शिता पर ध्यान कम ही देते हैं। लोको हॉस्पिटल का मामला भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जहां पहले दबाव बनाया गया और बाद में परिचितों के लिए रास्ता साफ किया गया।
फिलहाल RPF व GRP की टीमें पूरी तरह सक्रिय हैं, और रेलवे स्टेशन पर एक तरफ साफ-सफाई व नियम, तो दूसरी तरफ माफिया तत्वों का सफाया, दोनों का संतुलन बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।