
व्यूरो रिपोर्ट रविशंकर मिश्रा
चंदौली। किसानों के हित में सरकारें लाख योजनाएं चला रही हैं, कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने की बातें की जा रही हैं, लेकिन जब जमीनी हकीकत की बात आती है, तो तस्वीर बिल्कुल उलटी नजर आती है। ऐसा ही एक उदाहरण है चंदौली जिले के चितौड़ी गांव के पास चंद्रप्रभा नदी पर बना सीपी रेगुलेटर, जिसकी हालत इस समय बेहद जर्जर और दयनीय हो चुकी है।
यह रेगुलेटर न सिर्फ चंदौली, बल्कि मिर्जापुर और सोनभद्र लोकसभा के किसानों के लिए भी सिंचाई का मुख्य माध्यम है। करीब 20 गांवों के 20 हजार बीघा खेतों की सिंचाई इसी रेगुलेटर के माध्यम से होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज इसकी हालत ऐसी हो गई है कि रेगुलेटर का गेट खुल नहीं पाता, जिससे या तो खेतों को पानी नहीं मिलता, या फिर अचानक जलभराव से फसलें बर्बाद हो जाती हैं।

रेगुलेटर के खराब होने की वजह से अब किसानों की धान, गन्ना, सब्जियों व अन्य फसलों की बुवाई भी प्रभावित हो रही है। चंदौली जिले को ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, लेकिन वर्तमान स्थिति में यहां के किसान कृषि संकट से जूझ रहे हैं। जिन खेतों में हर साल हरियाली लहलहाती थी, आज वहां सूखा और असमंजस का माहौल है।

किसानों का कहना है कि उन्होंने कई बार चंद्रप्रभा प्रखंड के अधिकारियों से गुहार लगाई है। जनप्रतिनिधियों को भी ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन हर बार यही जवाब मिलता है कि “बजट नहीं आया है, बजट आएगा तो मरम्मत कराई जाएगी।” सवाल यह उठता है कि जब लाखों-करोड़ों की योजनाएं और सब्सिडी सरकार दे रही है, तो तीन जिलों के लिए महत्त्वपूर्ण इस रेगुलेटर की मरम्मत के लिए बजट क्यों नहीं मिल पा रहा?
यह स्थिति तब है जब यह रेगुलेटर तीन जिलों को आपस में जोड़ता है और इसका असर हजारों किसानों की आजीविका पर पड़ रहा है। किसानों का आरोप है कि जनप्रतिनिधि सिर्फ चुनाव के समय नजर आते हैं, वादे करते हैं, भाषण देते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद वे क्षेत्र की मूलभूत समस्याओं से मुंह मोड़ लेते हैं।

किसानों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि यदि समय रहते इस रेगुलेटर की मरम्मत नहीं कराई गई, तो आने वाले समय में और भी बड़ी कृषि आपदा खड़ी हो सकती है। कई किसानों की इस बार की फसल तो पहले ही खराब हो चुकी है, और अब अगली बुवाई पर संकट मंडरा रहा है।
गांवों में सिंचाई का कोई वैकल्पिक साधन भी नहीं है। नहरों की स्थिति पहले से ही खराब है, और बारिश पर निर्भरता लगातार जोखिम भरी होती जा रही है। ऐसे में अगर सीपी रेगुलेटर ही काम नहीं करेगा तो किसानों के पास सिंचाई का कोई साधन नहीं बचेगा।
इस पूरे मामले में शासन-प्रशासन की निष्क्रियता और लापरवाही साफ दिखाई दे रही है। जिस तरह से कृषि को आत्मनिर्भर भारत का आधार बताया जा रहा है, उस आधार को ही कमजोर करने वाला यह उदाहरण सरकार की कथनी और करनी के अंतर को उजागर करता है।
किसानों की मांग है कि शासन तत्काल प्रभाव से इस मामले को संज्ञान में ले, बजट जारी करे और रेगुलेटर की मरम्मत का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू कराए ताकि आने वाली फसल को समय रहते बचाया जा सके। साथ ही भविष्य में ऐसी समस्याएं न हों, इसके लिए रेगुलेटर की नियमित जांच और रखरखाव की स्थायी व्यवस्था बनाई जाए।
अब देखना यह है कि क्या सरकार और प्रशासन किसानों की आवाज़ सुनकर ज़मीनी कार्यवाही करती है या फिर यह मामला भी कागज़ों और आश्वासनों में ही सिमट कर रह जाएगा। किसानों का सब्र अब जवाब देने लगा है, और वे बस यह पूछ रहे हैं — “आख़िर हमारी सुनवाई कब होगी?”